Wednesday, December 16, 2015

बाजीराव-मस्तानी की 300 साल पुरानी प्रेम कहानी

बाजीराव महज़ 20 साल की उम्र में, अपने साम्राज्य के पेशवा के रूप में नियुक्त कर दिए गए थे। उन्होंने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आने वाले 20 सालों में लगभग 41 से भी अधिक युद्ध लड़े। उनके बारे में   प्रचलित है कि इन युद्धों में से एक भी युद्ध में वह पराजित नहीं हुए। वह विजय का परचम लहराते हुए आगे बढ़ते रहे।
  हालांकि, इससे भी ज़्यादा दिलचस्प बात मस्तानी के साथ उनकी प्रेम कहानी है। बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी इतिहास की दिलचस्प प्रेम कहानियों में एक है।


वैसे तो, बाजीराव और मस्तानी से जुड़ी कई कहानियां हैं, लेकिन उन सभी कहानियों में एक बात समान है। और वह है असीम प्रेम। बाजीराव-मस्तानी के बारे में कहा जाता है कि दोनों खुद से ज़्यादा एक-दूसरे को प्यार करते थे। हालांकि, उनकी इस बेइन्तहा मोहब्बत की कहानी का अंत काफी दुःखद था।

मस्तानी बाजीराव की दूसरी पत्नी थीं। कहते हैं कि वह मुसलमान थी और बुंदेलखंड से ताल्लुक रखती थी। उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी बेइन्तहा खूबसूरती के चलते उन्हें ‘सौंदर्य की रानी’ कहा गया। मस्तानी को बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की बेटी भी माना जाता है।

28 अप्रैल, 1740 को बाजीराव की तबियत अधिक ख़राब होने के कारण 39 वर्ष की आयु में ही उनकी मृत्यु हो गई। बाजीराव के देहान्त के कुछ दिनों बाद मस्तानी का भी मौत हो गई।

मस्तानी की मृत्यु कैसे हुई, इस संबंध में कोई साक्ष्य नहीं है। लेकिन दंतकथाओं के मुताबिक बाजीराव की मौत की खबर सुनते ही मस्तानी ने अपनी अंगूठी में रखा ज़हर पीकर आत्महत्या कर ली थी। वहीं लोग ऐसा भी मानते हैं कि मस्तानी सती संस्कार की प्रथा अपनाते हुए बाजीराव की चिता पर सती हो गईं।



रानी मस्तानी की समाधि

दिसंबर 1728 में अल्लाहाबाद के मुगल प्रमुख मोहम्मद खान बंगाश ने बुंदेलखंड पर हमले की योजना बनाई। महाराजा छत्रसाल को बंगाश की योजना के बारे में पता चल चुका था। उन्होंने सहायता मुहैया कराने के लिए बाजीराव को खत लिखा।

खत मिलने के तुरंत बाद ही बाजीराव अपनी सेना के साथ महाराजा छत्रसाल की सहायता के लिए रवाना हो गए। बंगाश युद्ध में परास्त हो गया और उसे बंदी बना लिया गया। बाद में उसे इस शर्त के साथ मुक्त कर दिया गया कि वह दोबारा कभी भी बुंदेलखंड पर आक्रमण नहीं करेगा।


युद्ध में बाजीराव द्वारा दी गई सहायता से छत्रसाल बाजीराव के बहुत आभारी थे और उन्हें अपने बेटे के रूप में मानने लगे। इतना ही नहीं, छत्रसाल ने अपने साम्राज्य को तीन भागों में विभाजित कर दिया, जिनमें से एक हिस्सा बाजीराव को भेंटस्वरूप प्रदान किया। इनमें झाँसी, सागर और कालपी का भी समावेश था।

इसके साथ ही छत्रसाल ने अपनी बेटी मस्तानी और बाजीराव की शादी का प्रस्ताव भी बाजीराव के समक्ष रखा। वहीं कुछ इतिहासकार मानते हैं कि मस्तानी छत्रसाल की बेटी नहीं, बल्कि छत्रसाल के दरबार की नर्तकी थी।


बाजीराव ने मस्तानी को अपनी दूसरी पत्नी का दर्जा दिया। वह मस्तानी की कई प्रतिभाओं से आकर्षित थे। मस्तानी खूबसूरत तो थीं ही, वह एक कुशल घुड़सवार, तलवारबाज, युद्ध नीति, धार्मिक अध्ययन, कविता, नर्तकी व गायिका भी थीं।

इन अपार खूबियों ने मस्तानी को बाजीराव का प्रिय बना दिया। माना जाता है कि मस्तानी ने कई सैन्य अभियानों में बाजीराव का साथ दिया था।




मस्तानी से बाजीराव को एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई। माना जाता है कि स्थानीय ब्राह्मण समुदाय एवं हिन्दुओं ने मस्तानी के पुत्र को पूर्ण रूप से ब्राह्मण मानने से इन्कार कर दिया, क्योंकि मस्तानी मुसलमान थी। यहां तक कि उन्होंने बाजीराव और मस्तानी की शादी को भी मानने से इन्कार कर दिया।

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि मस्तानी गंभीर चरित्र हनन का शिकार हैं। उन्हें इतिहासकारों ने ‘नर्तकी’ के रूप में दिखाया है। हालांकि वह भगवान कृष्ण की परम भक्त थी।

बाजीराव-मस्तानी का महल


बाजीराव की पहली पत्नी का नाम काशीबाई था। बाजीराव से विवाह के बाद, काशीबाई मराठा साम्राज्य की रानी बन गई। काशीबाई बाजीराव के प्रति बेहद ही निष्ठावान थीं।

जब बाजीराव का विवाह मस्तानी से हुआ, काशीबाई ने इस शादी को स्वीकार किया, क्योंकि उस समय राजा का किसी दूसरी स्त्री से विवाह गलत नहीं माना जाता था।




कुछ समय बाद काशीबाई और मस्तानी ने अपने-अपने पुत्रों को जन्म दिया, लेकिन काशीबाई के पुत्र की मृत्यु कम उम्र में ही हो गई। जहां एक तरफ काशीबाई अपने पुत्र को खोने के दुःख से उबर रही थी, वहीं दूसरी ओर मस्तानी का दबदबा बढ़ता ही जा रहा था। इस बात से काशीबाई व्यथित थी। इतिहासकार मानते हैं कि काशीबाई को मस्तानी के पुत्र को देखकर ईर्ष्या होती थी।

मस्तानी दरवाज़ा

यही नहीं, बाजीराव के परिवार के ही कुछ सदस्यों ने बाजीराव से मस्तानी को दूर करने के कई प्रयास किए। बाजीराव के परिवार के मस्तानी के साथ दुर्व्यहार के कारण बाजीराव ने मस्तानी के लिए वर्ष 1734 में कोथरुड में एक अलग निवास स्थान का निर्माण करवाया। यह स्थान आज भी कर्वे रोड पर मृत्युंजय मंदिर के बगल में स्थित है।

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