बीते हफ्ते वेबसाइट 'मदरबोर्ड' को दिए इंटरव्यू में वैज्ञानिक ग्रे ने कहा कि वे अमरता जैसे शब्दों को पसंद नहीं करते। लेकिन उनका विश्वास है कि ऐसा समय जल्द आएगा, जब व्यक्ति बुढ़ापे से मुक्ति पा लेगा।
उनसे जब पूछा गया कि क्या ऐसा व्यक्ति है, जो बुढ़ापा में होने वाले खराब स्वास्थ्य पर हमेशा के लिए विजय पा लेगा? इस पर ग्रे ने कहा कि इसकी संभावना बहुत अधिक है, शायद 80 फीसदी।
कैलिफॉर्निया स्थित स्ट्रैटजी फॉर इंजीनियर्ड नेग्लिजिबल सिनेसेंस (एसईएनएस) रिसर्च फाउंडेशन के को-फाउंडर ग्रे ने कहा कि अमरत्व का मतलब होता है किसी भी बीमारी से पूरी तरह सुरक्षा। इसके कारण किसी भी व्यक्ति की बढ़ती उम्र का उसके स्वास्थ्य पर असर नहीं पड़ता है और वह मौत की वजहों को दरकिनार करता रहता है।
उन्होंने कहा कि ऐसा कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आएगा, जिसके कारण मानव हमेशा के लिए अमर हो जाएगा। लेकिन हो सकता है कि वह अपनी उम्र बढ़ा ले। शायद 30 साल या उससे भी ज्यादा। हालांकि, अभी इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी, वैज्ञानिक इस पर खोज कर रहे हैं।
हम आने वाले समय इस समस्या पर विजय पा लेंगे और हम व्यक्ति को जितने लंबे समय तक चाहें उसकी उम्र बरकरार रख सकेंगे। ग्रे की थ्योरी एक विचार पर आधारित है, जिसमें इलाज के जरिए जीने की गति बढ़ा सकते हैं। संभवत: जीने की ये गति हमारी उम्र से मेल खाती है। ग्रे ने बताया कि हर दशक जीने की उम्र दो साल की दर से बढ़ रही है। लेकिन आने वाले समय में यह हर साल एक साल और बढ़ जाएगी।
वैज्ञानिकों की बोली भाषा में जेली फिश जो प्राणी समुदाय के मेटाज़ोआ श्रेणी की नुमाईंदगी करती है में रिवर्स एजिंग यानी जीवन के उलटे चक्र की इस विशेषता को ट्रांसडिफरेंसियेशन कहा जाता है . इस प्रक्रिया के तहत पहले इस जीव की छतरी सिमट जाती है फिर सम्वेदिकाएं और फिर अन्य शारीरिक अवयव/पदार्थ (मीसोग्लिया ) शोषित हो उठते हैं ...और अब छतरी के विपरीत सिरे से यह किसी सतह पर चिपक कर फिर नए शिशु जेलीफिश -"पालिप" का अलैंगिक उत्पादन शुरू कर देती है -और यह पूरी प्रक्रिया जैवीय अमरता की एक अद्भुत मिसाल पेश करती है ....अब वैज्ञानिक कोशिका स्तर पर ट्रांसडिफरेंसियेशन प्रक्रिया को जानने समझने में जुट गए हैं और अगर इस प्रक्रिया का दुहराव अन्य प्राणियों या मनुष्य की कोशिकाओं में किया जाना संभव हो जाय तो फिर क्या अमरता की हमारी चिर कामना पूरी नहीं हो जायेगी? ...हालांकि अमरता की अपनी मुसीबतें भी हैं .....यह धरती बिना प्राणत्याग के कितने मनुजों की भार ढोती रहेगी ..संसाधन कहाँ से आयेगें? और जब अभी सौ वर्ष का ही जीवन अनेक रोगों ,कष्ट से व्याप्त है तो अमर जीवन क्या नरक तुल्य नहीं हो जाएगा .....?
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